गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

नगरसेवक की ना-लायकी से नल में पानी नहीं!!

क्या आप जानते हैं हमारे निर्दलीय नगरसेवक मोहम्मद फारूक जी को जो मुंबई के एम्/पूर्व विभाग के वार्ड क्रमांक १३५ में निर्दलीय खड़े हुए और बड़े ही खुश किस्मत रहे कियूं की अपने अकेली की दानवीर करण जैसी छवि के बूते पर जोर शोर से जीत भी गए अच्छे अच्छे सामने खड़े थे मगर धुल चटा दी, भई दयालु और बंद मुठ्ठी देने जैसे घमासान प्रचार के बूते पर जनता ने चुना था उन्हें कोई कैसे हरा पाता, जीतने के लगभग चार साल बाद भी अब तक जनता से मिलने के लिए एक ऑफिस का प्रबंध भी नहीं किया? इस बारे में कई तरह की आवाजे भी उठीं मगर सुनने में आया कि मांगने वाले बहुत परेशान करते हैं इस लिए ऑफिस नहीं बनाई? वाह क्या बात है दानी बन कर लोगों से वोट तो ले लिया मगर उन्हीं से भाग रहे हो! कोई बात नहीं भला बेचारे कितना लुटाएंगे और कब तक? जीतने के लिए ऐसे फार्मूले तो अपनाये ही जाते हैं अब जनता ना समझे तो उस में उन का क्या कुसूर है, लोग रात में ११:०० बजे के बाद उन से मिलने के लिए उन के घर के बाहर अक्सर लंबा इंतेज़ार करते हुए दिखाई देंगे, आप भी देखना चाहें तो आकर यह नज़ारा देख सकते हैं,
लोगों का भला हो या ना हो मगर उन के करीबी समझे जाने वाले लोगों का तो उन के आने के बाद बहुत भला होता हुआ दिखाई दे रहा है, जिस को देखो वही मनपा कार्यालय के चक्कर लगाकर जनता के काम करने में व्यस्त है, जनता के काम करने में जो मज़ा है उसे कौन नहीं जानता इस में भलाई भी है और मलाई भी? वसाहत कार्यालय तो जैसे दलालों का अड्डा बन गया है! एक जाता है तो दूसरा आता है, इस बात को स्थानीय जनता भी अपनी आँखों से देख और समझ रही है, पहले जो काम चार आने में होता था वही काम महोदयजी के चेले बारह आने में करवा कर बड़ी शान से घूम रहे हैं,
अभी कुछ महीने पहले अपने प्रोपोसल पर पानी कि दो इंच कि पाईप लाईन का काम पूरे चीता कैम्प में करवाया गया, समस्या पहले जैसी ही है मगर नगर सेवक और उन के चेले बहुत खुश हैं, हाँ वह जहाँ रहते थे वहाँ पानी कि बरसों से समस्या बनी हुई थी जो उन के आने के बाद सुलझ गयी, पानी पर सारा जोर शायद इसी लिए दिया ताकि कोई यह ना कह सके कि देखो नगर सेवक इसी लिए बने थे कि अपना काम करवालें, कहने वालों का भला क्या है वह भले मानुस के बारे में भी कुछ भी कह देते हैं,
इसी क्षेत्र में मनपा का शाहजी नगर उर्दू स्कूल नं.१ और ३, तमिल स्कूल नं.१ हैं जहाँ हज़ारों बच्चे पढते हैं आज पिछले कई बरसो से पानी की भयंकर समस्या जूं की तूं बनी हुई है मगर उन्हें इस से क्या अभी हाल ही में दो इंच की पाईप लाईन के काम के दौरान भी उन्हें उन मासूम बच्चों की रोज रोज बूँद बूँद पानी की होने वाली तकलीफ दिखाई नहीं दी? एक दो इंच की अलग पाईप लाईन उस स्कूल में लगवा देते तो हजारों स्कूली बच्चों की समस्या ही समाप्त हो जाती मगर उन की इस काम में कोई खास दिलचस्पी दिखाई ही नहीं दी वर्ना इस तकलीफ का कब का समाधान हो गया होता, बेचारे उन हज़ारों बच्चों की बद-किस्मती ही समझी जायेगी जो बूँद बूँद पानी के लिए इधर उधर मारे मारे फिरते हैं फिर भी उन्हें पानी नहीं मिलता...........